उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा विभाग को फिर लगी हाई कोर्ट से लताड़
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कोर्ट ने खींच दी रेखा |
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स के हितो को सुरक्षित रखते हुए एक और फैसला सुनाया है और उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमे उसने कहा था कि ट्रांसजेंडर्स के शैक्षिणिक प्रमाण पत्र से उसके नाम और लिंग में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता है हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रांसजेंडर्स के हितों की सुरक्षा करते हुए ये भी कहा कि राज्य सरकार को अधिकारों के संरक्षण अधिनियम 2019 के मौजूदा नियमों में संशोधन करके ट्रांसजेंडर के अधिकारों को भी अनिवार्य बनाते हुए क़ानूनी जामा पहनाना चाहिए |
हल्द्वानी उत्तराखंड के निवासी एक ट्रांसजेंडर ने पहले एक लड़की के रूप अपनी शैक्षिणिक डिग्री प्राप्त की लेकिन बाद में उसने 2020 में दिल्ली के एक हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट के बाद अपना लिंग परिवर्तन करवा लिया , ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिकारों के संरक्षण अधिनियम 2019 के धारा 07 के अंतर्गत उसे नैनीताल कोर्ट ने नया पहचान पत्र भी जारी कर दिया है इसके बाद भी उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा ने बोर्ड के नियम अध्याय 12 के खंड 27 के अंतर्गत उसके नाम और लिंग को परिवर्तन करने की अनुमति नहीं देने का कारण बताते हुए कहा कि बोर्ड अधिनियम केवल उन नामों को परिवर्तन करने की अनुमति देते है जो अश्लील और अपमानजनक है लेकिन मौजूदा प्रकरण में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है इसलिए उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड इस शैक्षणिक प्रमाण पत्र में कोई परिवर्तन करने की अनुमति नहीं दे सकता है इस पर नैनीताल हाई कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिकारों के संरक्षण अधिनियम 2019 के अंतर्गत बोर्ड को अपने नियम में परिवर्तन करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है और साथ ही नए नियम से माननीय हाई कोर्ट अवगत करने को निर्देशित किया है |
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