सरकारी सेवक को अपराध की सजा पाने पर भी बर्खास्त नहीं किया जायेगा बल्कि

बिना विभागीय जाँच के सरकारी सेवक को सेवा से हटाना अवैधानिक- इलाहाबाद हाईकोर्ट 

 इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम् फैसला 

    माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने कल अपने एक अति महत्वपूर्ण आदेश में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के हवाले से लिखा कि संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के अंतर्गत किसी भी सरकारी कर्मचारी या कार्मिक को केवल इस आधार पर कि उसे माननीय न्यायलय ने सजा दे दी है उसकी सेवाओं को बर्खास्त करना या उसकी रैंक को कम करना या उसे सेवा से निकाल देना उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन माना जायेगा, माननीय न्यायालय द्वारा सजा दिए जाने के बाद भी सरकारी कार्मिक की विभागीय उच्च अधिकारी द्वारा जाँच की जानी अनिवार्य है और इसी आधार पर उसके सेवा परिलाभ निर्भर करेंगे ,बिना विभागीय जाँच के उसे सरकारी सेवाओं से नहीं हटाया जा सकता है | 

    माननीय न्यायालय ने ये फैसला एक शिक्षक जिसकी नियुक्ति 1999 में प्राइमरी विद्यालय रसूलपुर देहात कानपुर उत्तर प्रदेश में हुई थी, 2017 में उसे  सहायक अध्यापक के पद पर पदोन्नति प्रदान की गयी लेकिन 2009 में उसपर दहेज़ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया जिस पर 2023 में उसे उम्र कैद की सजा माननीय न्यायलय द्वारा सुनाई गयी लेकिन सजा मिलते ही बेसिक शिक्षा अधिकारी कानपुर देहात ने उसे उसकी सेवाओं से बेदखल कर दिया तब याची ने माननीय न्यायलय में संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के अंतर्गत बेसिक शिक्षा अधिकारी कानपुर देहात के आदेश को चुनौती देते हुए अपनी याचिका में न्याय की प्रार्थना की थी , उसकी प्रार्थना को सुनते हुए माननीय न्यायालाय ने बेसिक शिक्षा अधिकारी कानपुर देहात के आदेश को निष्प्रभावी करते हुए विभागीय जाँच के आदेश दिए है और अपने आदेश में लिखा कि विभागीय जांच के बिना किसी भी सरकारी कार्मिक को उसकी सेवा से बर्खास्त करना उसके अधिकारों का हनन होगा क्योंकि विभागीय जाँच पर ही उसके सेवा परिलाभ की गणना निर्भर करती है |

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