उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड
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समान नागरिक संहिता कानून (यूनिफॉर्म सिविल कोड)
समान नागरिक संहिता कानून |
क्या है समान नागरिक संहिता कानून-
समान नागरिक संहिता कानून (UCC) का अर्थ होता है कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का होना , चाहें वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो | इसके लागू हो जाने से सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू किया जा सकेगा | शादी,तलाक,जमीन जायदाद के बंटवारें में सभी धर्मों के लिए एक प्रकार का कानून ही लागू होगा | समान नागरिक संहिता कानून(UCC) का अर्थ है एक निष्पक्ष कानून का होना जिसका किसी धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं हो | समान नागरिक संहिता कानून(UCC) का उदेश्य कानूनों का समान सेट प्रदान करना है जो सभी लोगों पर एक समान रूप से लागू हो |
देश के संविधान के अनुच्छेद 44 में भी समान नागरिक संहिता कानून(UCC) को लेकर स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है इसमें लिखा गया है कि राज्य भी इसे लागू कर सकते है इसका उदेश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को खत्म करना है | संविधान के भाग-4 में मौजूद राज्य के नीतिनिर्देशक तत्व में भी इसका उल्लेख है |
नहीं है संवैधानिक बाधाएं -
अयोध्या श्रीराम मंदिर और कश्मीर के संदर्भ में अनुच्छेद 370 के सम्बन्ध में कई क़ानूनी रुकावट थी लेकिन समान नागरिक संहिता कानून(UCC) के मुद्दे पर ऐसी कोई क़ानूनी अड़चन नहीं है सुप्रीम कोर्ट और कई राज्यों के हाईकोर्ट ने भी समान नागरिक संहिता कानून(UCC) की आवश्यकता बताई है ,संविधान के अनुच्छेद 44 में भी इसके लिए प्रावधान है , संविधान के भाग 4 में उल्लेखित नीतिनिर्देशक तत्व भी इसकी वकालत करते है |
सरकार समान नागरिक संहिता कानून(UCC) को पहले कुछ सीमित राज्यों में ही लागू करना चाहती है जैसे जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर भी सरकार भी यही मान्यता है | भारत के 22 वे विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता कानून(UCC) के मुद्दे पर नए सिरे से सार्वजानिक और धार्मिक संगठनों से उनके विचार मांगे है इससे पहले आयोग ने तीन साल पहले भी राय पत्र माँगा था लेकिन तब से लेकर अब तब परिस्तिथियाँ काफी परिवर्तित हो गयी है |
भारत मे समान नागरिक संहिता की क्यों आवश्यकता है -
समान नागरिक संहिता भारतीय समाज में सभी नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह एक संविधानिक दस्तावेज होता है जो व्यक्ति की मौजूदा नागरिकता के आधार पर उनके मौलिक और न्यायिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। इसकी आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है:
मौलिक अधिकारों की संरक्षा: समान नागरिक संहिता नागरिकों को मौलिक अधिकारों, जैसे स्वतंत्रता, जीवन, स्वतंत्रता of विचार, धर्म, और संगठन संघ के अधीन एकता आदि, की संरक्षा करने में मदद करती है। इसे न्यायिक और कानूनी माध्यमों के माध्यम से लागू किया जाता है ताकि नागरिकों की मौजूदा नागरिकता के आधार पर अधिकारों की सुरक्षा हो सके।
भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ संरक्षा: समान नागरिक संहिता भेदभाव, उत्पीड़न, और अन्य न्यायिक उत्पादों के खिलाफ संरक्षा प्रदान करती है। यह आपत्तिजनक और न्यायिक आचरणों से नागरिकों को सुरक्षित रखती है और उन्हें उनके अधिकारों की रक्षा करने की अनुमति देती है।
नागरिकों के कर्तव्यों का स्पष्टीकरण: समान नागरिक संहिता में नागरिकों के कर्तव्यों को स्पष्ट करने का भी उद्देश्य होता है। यह उन्हें संविधानिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करती है और उन्हें संविधान की मान्यता करने के लिए प्रेरित करती है।
न्यायिक प्रणाली को स्थापित करना: समान नागरिक संहिता एक न्यायिक प्रणाली को स्थापित करने का माध्यम भी है। यह न्यायिक शाखाओं और अदालतों को नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है और उन्हें न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए उत्साहित करता है।
इन सभी कारणों से, समान नागरिक संहिता भारतीय समाज की संरचना, सुरक्षा, और समरसता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। यह नागरिकों को एक सामान्य और सुरक्षित माध्यम के रूप में एकजुट करती है और उन्हें एक न्यायिक और संविधानिक संरचना के अंतर्गत रहने का अधिकार प्रदान करती है |
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