वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए विभागीय आय व्ययक तैयार किये जाने के सम्बन्ध में

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वित्तीय वर्ष 2025-26  के लिए विभागीय आय व्ययक  पेज 01  पेज 02  YOU MAY ALSO LIKE IT- हिममेधा ब्लॉग उत्तराखण्ड में शिक्षकों को दुर्गम की सेवाओं का दोगुना लाभ मिलना शुरू  इस पड़ौसी राज्य में अब सहायक अध्यापक भी बन सकेंगे प्रधानाचार्य  प्रोजेक्ट कार्य सामाजिक विज्ञान- यूरोप में समाजवाद और रुसी क्रांति  सीबीएसई परीक्षा में स्कूल ने गलती से छात्रा को दे दिए जीरो मार्क्स, अब कोर्ट ने लगाया 30 हजार रूपये का जुर्माना  उत्तराखण्ड बोर्ड ने घोषित की प्रैक्टिकल और बोर्ड परीक्षा की डेट

कमाऊ पत्नी से कम नहीं होता है गृहणी का योगदान-सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी रेखा

हाई कोर्ट के दृष्टिकोण पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी रेखा 

आज के महंगाई के दौर में दुनियाभर में अनेक लोगों की आम धारणा है कि उनकी पत्नी भी कमाई करती हो, उनकी मान्यता ये होती है घर में काम करना ,घर संभालना कोई बड़ा काम नहीं है उनकी नज़रों में उनकी काम करने शिफ्ट या समय की भी कोई कीमत नहीं होती है | उत्तराखंड ट्रिब्यूनल के एक फैसले पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए हाउसवाइफ की घर संभालने की जिम्मेदारियों को अमूल्य बताते हुए कहा है कि घर सँभालने वाली गृहणियों के योगदान को किसी भी तरह से कमाई करने वाली महिलाओं के योगदान से कम नहीं आंका जा सकता है | 

उत्तराखंड राज्य में ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2006 के मोटर दुर्घटना के एक मामले में जिसमे वाहन सवार महिला की मृत्यु हो गयी थी , इस गाडी का कोई बीमा नहीं कराया गया था जिसके कारण उसके परिवार को मुआवजा देने का दायित्व गाड़ी के मालिक पर आ गया था जब मामला ट्रिब्यूनल में पहुंचा तो ट्रिब्यूनल ने मृत महिला के परिवार को 2.5 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति देने का फैसला सुनाया कम क्षतिपूर्ति के मामले को लेकर परिवार ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो हाई कोर्ट ने 2017 में उनकी अपील को ख़ारिज करते हुए लिखा कि प्रकरण में मृत महिला एक गृहणी थी इसलिए क्षतिपूर्ति के दावे को उसकी जीवन प्रत्याक्षा और न्यूनतम काल्पनिक आय के आधार पर तय किया गया है इसलिए हाई कोर्ट को ट्रिब्यूनल के फैसले में कोई कमी नहीं दिखाई देती है ट्रिब्यूनल ने मृत महिला की अनुमानित आय को एक दिहाड़ी कामगार से कम आँका है | इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के लिखा कि हाई कोर्ट का एक गृहणी के योगदान को लेकर ऐसा दृष्टिकोण चिंताजनक है एक गृहणी जो घर में काम करती है परिवार को देखती है बच्चों को संस्कार देती है समाज को देखती है उसके कार्यों और उसके योगदान को मौद्रिक संदर्भ में नहीं आंका जा सकता है लेकिन उसका योगदान किसी भी ऐसी महिला जो नौकरी करती है से किसी भी तरीके से कम नहीं माना जा सकता है | माननीय सुप्रीम कोर्ट ने लिखा कि ट्रिब्यूनल और अदालतों को मोटर दुर्घटना के या ऐसे अन्य दावों में गृहणियों के काम ,त्याग और जिम्मेदारियों के आधार पर उन महिलाओं की काल्पनिक आय की गणना करके क्षतिपूर्ति के दावों का निवारण करना चाहिए |  


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