जगन्नाथ पूरी मंदिर में लगभग 92 करोड़ का सोना , बीते 45 साल से नहीं खुला खजाना

12 वी सदी के मंदिर का खजाना खुलवाने पर अड़ी कांग्रेस

जगन्नाथ पूरी मंदिर

देहरादून से जगन्नाथ पुरी मंदिर की दूरी लगभग 1,800 किलोमीटर (या 1,118 मील) है। यह जगन्नाथ पुरी ओडिशा राज्य के पूर्वी तट पर स्थित है।जगन्नाथ पुरी मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिन्दू धर्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (भगवान कृष्ण के एक रूप) को समर्पित है।जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में शुरू हुआ था और इसका पूरा निर्माण कार्य 12वीं से 13वीं सदी के बीच में सम्पन्न हुआ था। इसलिए, यह मंदिर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है और इसका इतिहास महत्वपूर्ण है | जगन्नाथ पुरी मंदिर का निर्माण किसी व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ की पूजा के लिए बनाया गया था और इसका निर्माण भक्तों और समुदाय के संयोजन से हुआ था। इसके निर्माण का आदान-प्रदान भगवान के भक्तों और राजा अनंगभीम द्वितीय द्वारा किया गया था।जगन्नाथ पुरी मंदिर में "लिटन दान" (यानी सोना या चांदी के आभूषणों का दान) की परंपरा बहुत प्राचीन है और यह मंदिर के महत्वपूर्ण धार्मिक अद्यात्मिक क्रियाकलाप में शामिल है। मंदिर में लिटन दान की अनुमति विशेष दिनों और आयोजनों के साथ सम्प्राप्त की जाती है।

पिछली बार कब खोला गया था दान पात्र का कक्ष

जगन्नाथ पुरी मंदिर का दान रत्न भण्डार पिछली बार 13 मई से 23 जुलाई 1978 के मध्य सूचीबद्ध किया गया था लेकिन फिर पुनः 14 जुलाई 1985 को इसे खोला गया था लेकिन इस बार दान की सूची अपडेट नहीं की गयी थी , उस समय इस भंडार में 12831 भरी सोने के आभूषण और 22153 भरी चांदी के बर्तन थे जिनमे कीमती पत्थर और रत्न जड़ें हुए थे , इनकी कुल अनुमानित कीमत 93 करोड़ रूपये से भी अधिक बताई जा रही है | भरी एक तोलने की इकाई होती है एक भरी का अर्थ है 11.7 ग्राम |

दान कक्ष की चाबियां भी है गुम

2018 के तत्कालीन पूरी के कलेक्टर ने मंदिर समिति की बैठक में ये स्पष्ट कहा था कि उन्हें इस दान पात्र कक्ष की चाबियों के बारे कोई जानकारी नहीं है जबकि दान पात्र कक्ष की चाबियाँ सँभालने का दायित्व पूरी के कलेक्टर का ही होता है , दरसल मंदिर की दीवारों के दरार की मरम्मत करने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग ने केंद्र को पत्र लिखा था जिसके बाद से कांग्रेस पार्टी इस खजाने को खोलने और गिनती करवाने पर अड़ी है जबकि मंदिर समिति चाहती है कि 2024 की रथयात्रा के दौरान इसे खोला जाये |

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