उत्तराखंड हाई कोर्ट ने दिया फैसला- क्या किसी महिला को प्रेगनेंसी में सरकार नौकरी देने से मना कर सकती है ?
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उत्तराखंड सरकार को हाई कोर्ट की फटकार
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने दिया फैसला |
क्या किसी महिला को गर्भावस्था की दशा में नौकरी करने से रोका जा सकता है | इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायलय उत्तराखंड ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है और आदेश देते हुए कहा है कि प्रेगनेंसी के आधार किसी महिला को रोजगार देने से वंचित नहीं किया जा सकता है, इसके साथ ही माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड ने मातृत्व के महत्व को ईश्वर का महान आशीर्वाद बताया है |
चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण महानिदेशक उत्तराखंड की और से एक महिला आवेदक को नियुक्ति पत्र प्राप्त होने के बावजूद बी डी पांडे हॉस्पिटल ने प्रेगनेंसी की दशा में होने के कारण उक्त महिला को फिटनेस प्रमाणपत्र देने से इंकार करते हुए उक्त महिला को अस्थाई रूप से शामिल होने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था इस प्रमाणपत्र में प्रेगनेंसी के अतिरिक्त किसी और स्वास्थ्य समस्या का उल्लेख नहीं किया गया था , जिसके बाद नैनीताल के एक हॉस्पिटल ने उक्त महिला को नर्सिंग अधिकारी के पद से वंचित कर दिया था इसके पश्च्यात उक्त महिला ने माननीय उच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने अपना निर्णय महिला के पक्ष में सुनाते हुए कहा कि किसी महिला को केवल प्रेगनेंसी के कारण नौकरी से वंचित करना गलत है माननीय उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार के उस नियम को भी रद्द कर दिया है जिसमे 12 सप्ताह या उससे अधिक की प्रेग्नेंट महिलाओं को रोजगार के लिए अस्थाई रूप से अयोग्य माना जाता है इस नियम के अनुसार प्रसव के छः हफ्ते बाद किसी भी महिला को फिटनेस प्रमाणपत्र देना अनिवार्य किया गया है, माननीय उच्च न्यायालय ने इस नियम को असंवैधानिक माना है और इस नियम में महिलाओं के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण रखने के कारण उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाते हुए अपनी नाराजगी भी जाहिर की है | माननीय उच्च न्यायालय ने मातृत्व अवकाश को मौलिक अधिकार मानते हुए किसी भी महिला के लिए इसे गरिमा से जुडा बताया है माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि एक प्रेग्नेंट महिला नई नियुक्ति पर अपने कर्तव्यों में शामिल क्यों नहीं हो सकती है जबकि वह कार्यभार ग्रहण करने के बाद नियमनुसार मातृत्व अवकाश की हकदार होगी |
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