Project work/परियोजना कार्य इतिहास -भूमण्डलीकृत विश्व का बनना
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परियोजना कार्य संख्या-04 भूमण्डलीकृत विश्व का बनना
परियोजना कार्य इतिहास -भूमण्डलीकृत विश्व का बनना
परियोजना का नाम- भूमण्डलीकृत विश्व का बनना
परियोजना का उद्देश्य- भूमण्डलीकृत विश्व के निर्माण का मुख्य उदेश्य वैश्विक समृद्धि और समरसता को प्रोत्साहित करना है। इस परियोजना का हेतु विश्वभर में विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करने के माध्यम से, एक संगठित, समरस और उत्कृष्ट भूमण्डलीकृत विश्व की रचना की जा रही है।
इस परियोजना का पहला लक्ष्य विश्व के अधिकांश देशों के बीच साथीपन की भावना और अभिवृद्धि की प्रेरणा बढ़ाना है। विभिन्न सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक, और सामाजिक विविधताओं का समानाधिकारिक और समरस साझा करना एक एकाधिकृत विश्व की दिशा में कदम बढ़ाना है।
इस प्रयास का दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और सांगठनिक क्षमता में समर्थता को बढ़ाना है। विश्वभर में एकीकृत अनुसंधान, विकास, और नई तकनीकों के साझा करने से ग्लोबल समस्याओं का समाधान निकालने में सहायता होगी और जनता को एक बेहतर जीवन का सामान्य लाभ होगा।
इस प्रक्रिया के माध्यम से, हम एक समृद्ध, सशक्त, और समरस भूमण्डलीकृत विश्व की दिशा में कदम बढ़ाते हैं, जिसमें सभी व्यक्तियों को अवसर है अपनी क्षमताओं को बढ़ाने और समर्थन करने का।
"भूमण्डलीकृत विश्व" का अर्थ- "भूमण्डलीकृत विश्व" का अर्थ हो सकता है "Globalized World" या "Globalized Universe"। इस शब्द का उपयोग विश्व भर में हो रहे व्यापक और संघटित सांसारिक प्रक्रियाओं और घटनाओं को संकेतित करने के लिए किया जा सकता है। इसमें अर्थात, विभिन्न भूगोलिक क्षेत्रों, समाजों, और अर्थनीतिक प्रणालियों के बीच संबंध, आवासीयता, और अन्य गतिविधियों का एक समृद्ध सम्बन्ध होता है।
भूमण्डलीकृत विश्व का अर्थ बदल सकता है और यह किसी विशेष संदर्भ में उपयोग हो रहा हो, लेकिन सामान्यत: यह एक ग्लोबल और आंतरराष्ट्रीय संदर्भ को संकेतित करता है जहां सभी देश और समुदाय एक बड़े संबंधात्मक जगह की भूमिका निभा रहे हैं।
रेशम मार्ग या सिल्क रूट से जुड़ती दुनिया -"रेशम मार्ग" या "सिल्क रूट" से संबंधित भूतकालीन समय में व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व था। इसे भारतीय उपमहाद्वीप से शुरू करके एशियाई राष्ट्रों तक पहुंचाने वाला एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग माना जाता है।
व्यापारिक महत्व: सिल्क रूट पर चलने वाला व्यापार एक समृद्धि स्रोत था। सिल्क एक मूल्यवान और आकर्षक वस्त्र सामग्री थी जो उच्च वर्णकुलों और राजा-महाराजाओं के लिए उपयोग होती थी। सिल्क रूट पर चलने वाले व्यापारी इसे व्यापार करने के लिए विभिन्न भूमियों को आत्मसात करने के लिए संबंध स्थापित करते थे, जिससे विशेष स्थानों पर नगर और व्यापारिक केन्द्र विकसित होते गए।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान: सिल्क रूट का संबंध भूमध्यसागर से लेकर एशियाई महाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों तक फैला था। इससे विभिन्न सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुए और भूमध्यसागर के किनारे स्थित देशों के बीच विभिन्न धार्मिक, साहित्यिक और विज्ञान संबंध विकसित हुए।
तात्कालिक साम्राज्यों के बीच यातायात: सिल्क रूट का महत्व यह भी था कि इसके माध्यम से विभिन्न साम्राज्यों के बीच व्यापार, यातायात और सांस्कृतिक विनिमय होता रहा। इसने विभिन्न समृद्धि संस्कृतियों के बीच एक सशक्त संबंध की स्थापना की और उन्हें आपसी व्यापार और सांस्कृतिक विकास का लाभ हुआ।
सिल्क रूट का इतिहास बहुतंत्री और समृद्धि का इतिहास है, और इसने भूतकाल से लेकर आधुनिक समय तक विभिन्न समृद्धि क्षेत्रों को जोड़ने का कार्य किया है।
19 वी सदी में उपनिवेशवाद- 19 वीं सदी में उपनिवेशवाद (Imperialism) ने विश्व इतिहास को गहरे परिवर्तनों का सामना करने का कारण बनाया। उपनिवेशवाद एक राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रणाली थी जिसमें एक राष्ट्र अन्य राष्ट्रों या क्षेत्रों पर नियंत्रण या अधीनता स्थापित करने का प्रयास करता था। यह एक उत्साही उद्दीपक था जिसने यूरोपीय देशों को विश्व के विभिन्न हिस्सों में व्यापार, अधिग्रहण, और नियंत्रण की ओर कारवाँबद्ध किया।
19 वीं सदी की शुरुआत में, उपनिवेशवाद ने भूमध्यसागरीय राष्ट्रों की आधिकारिक सत्ता पर विजय प्राप्त की। ब्रिटिश साम्राज्य, फ्रेंच साम्राज्य, और दूसरे यूरोपीय देशों ने अफ्रीका, एशिया, और ओस्ट्रेलिया में बड़े हिस्सों पर कब्जा किया। उन्होंने अपनी औद्योगिक और सांस्कृतिक विभूतियों को बाँटते हुए स्थानीय समाजों को शासन करने का प्रयास किया और उन्हें अपनी आर्थिक और सांस्कृतिक अधिग्रहण के तहत काम में लिया।
उपनिवेशवाद की एक पहलू था आर्थिक उत्तरदाताओं की खोज और उपभोग का निर्धारण करना। यूरोपीय देशों ने अपने संसाधनों और पूंजी का उपयोग करके उद्यमिता, औद्योगिकीकरण, और व्यापार में अपनी शक्ति बढ़ाई। यह अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार में हुआ, जिससे यह देशों के लिए आर्थिक लाभ पैदा करने का एक तरीका बन गया।
उपनिवेशवाद ने समग्र दुनिया में राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का केंद्र बना दिया। इसका प्रभाव आज भी दिखाई देता है, जैसे कि यूनाइटेड स्टेट्स और कनाडा जैसे देशों की उत्थान और आर्थिक शक्ति। हालांकि, इसके साथ ही यह भी सत्ता, सामरिक और सांस्कृतिक समस्याओं का सिर उठाता है, जो इसके प्रभाव को सहेजने में लगे हुए हैं।
रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग का आना - मेवेशी प्लेग, जिसे "रिंडरपेस्ट" भी कहा जाता है, पशुओं के बीमारियों में एक सांठ प्रदान करने वाला वायरस है। इसका प्रमुख प्रभाव पशुओं के संग्रहणियों, विशेषकर गाय और भैंसों, पर होता है। यह एक बड़े पैम्फिलिया विरुस का हिस्सा है, जिसमें मुख्यतः रिंदरपेस्ट वायरस (Rinderpest Virus) होता है।
रिंदरपेस्ट का प्रकोप पशु चिकित्सा के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन का कारण बना, विशेषकर 20वीं सदी में। यह पशुओं के बीमारियों में एक प्रमुख समस्या बन गया था, जिसने उनकी स्वस्थता और उत्पादकता को प्रभावित किया।
मुख्यत: रिंदरपेस्ट वायरस के प्रकोप के कारण गाय और भैंसे बीमार हो जाते थे, जिनसे उनकी मृत्यु हो जाती थी या फिर उनकी उत्पादकता में कमी आती थी। इससे कृषि और गाय पालन क्षेत्र में असीमित नुकसान होता था। यह बीमारी आफ्रीका, एशिया, और यूरोप के कई हिस्सों में फैली गई थी।
महत्वपूर्ण है कि रिंदरपेस्ट का एक प्रभावशाली प्रकार था क्योंकि यह एकमात्र पशुओं के बीमारियों का संपूर्ण उपशाखीय उच्चकोटि वायरसों में से एक था जिसके खिलाफ सफल टीके तैयार किए गए थे।
1990 के दशक में, ग्लोबल रिंदरपेस्ट इरादे के तहत, एक सक्सेसफुल बहुरूपी चिकित्सा प्रबंधन कार्यक्रम के परिणामस्वरूप, 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आधिकारिक घोषणा की कि रिंदरपेस्ट को पूरी तरह से उनमुल्यभूत किया गया है। यह विजय एक महत्वपूर्ण कदम था जो गाय पालन उद्योग और अन्य पशुपालन क्षेत्रों को सुरक्षित करने में मदद करने में सफल रहा।
भारत से अनुबंधित श्रमिकों का जाना -
भारत से अनुबंधित श्रमिकों को विभिन्न देशों में भेजा जाता है, और इसे अनुबंधित श्रम माइग्रेशन कहा जाता है। यह श्रमिक विभिन्न कारगर क्षेत्रों में काम करने के लिए दूसरे देशों में जाते हैं। इसमें विभिन्न कारण शामिल हो सकते हैं, जैसे कि आर्थिक आवश्यकता, रोजगार की खोज, और जीवन के बेहतर अवसरों की तलाश।
मिद्डल ईस्ट: मिद्डल ईस्ट क्षेत्र भारतीय अनुबंधित श्रमिकों के लिए एक प्रमुख क्षेत्र है, जहां वे नौकरियां करते हैं, खासकर इस्लामिक देशों में। सऊदी अरबिया, उए, कुवैत, बहरीन, कटर, और ओमान जैसे देश इसमें शामिल हैं।
सब-सहारा अफ्रीका: भारतीय श्रमिकों को अफ्रीकी देशों में भी भेजा जाता है, जैसे कि मॉजाम्बीक, कोत डीवॉआर, नाइजीरिया, गाना, लीबेरिया, और गबॉन।
एशिया: भारतीय अनुबंधित श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में जाता है, जैसे कि मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, इंडोनेशिया, फिजी, और ब्रुनेई।
यूरोप: भारतीय श्रमिकों को कुछ यूरोपीय देशों में भी नौकरी करने का अवसर मिलता है। इसमें गल्फ क्षेत्र के अलावा दक्षिणी एशिया के कुछ देशों को भी शामिल किया जा सकता है।
ये श्रमिक विभिन्न क्षेत्रों में जैसे कि निर्माण, सेवा, खेती, और गैर-स्वाकृतिक क्षेत्रों में काम करते हैं। अनुबंधित श्रमिकों का अनुभव विभिन्न हो सकता है, और कई बार इसमें कठिनाईयों और सामाजिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है।
प्रथम विश्वयुद्ध कब हुआ इसका क्या असर हुआ -
प्रथम विश्वयुद्ध (World War I) 28 जुलाई 1914 से 11 नवम्बर 1918 तक चला था। इसे "महायुद्ध" और "ग्रेट वॉर" भी कहा जाता है। यह युद्ध यूरोप, उत्तर अमेरिका, एशिया, और अफ्रीका के कई देशों को शामिल करता था और इसने दुनिया भर में व्यापक प्रभाव डाला।
इस युद्ध के कुछ मुख्य असर:
बदलता राजनीतिक मानवता: यह युद्ध एक नए राजनीतिक दृष्टिकोण को उत्पन्न करने में सफल रहा। अनेक राजधानियों का गिरना और नए राष्ट्रों की रचना ने राजनीतिक मानवता को बदला और नए राष्ट्रीय सीमाएं निर्धारित की।
आर्थिक परिवर्तन: युद्ध ने आर्थिक रूप से भी दुनिया को प्रभावित किया। युद्ध के बाद, देशों के बीच ऋण और उधार का प्रबंधन बदल गया, जिसने आर्थिक संबंधों में बदलाव को उत्तेजना दिया।
सामाजिक परिवर्तन: युद्ध ने समाज में भी बड़े परिवर्तन को उत्पन्न किया। महिलाओं को उद्योगों में और समाज में अधिक अधिकार मिलने लगे।
नए रखवाले राष्ट्रों की रचना: युद्ध ने नए राष्ट्रों की रचना की जिन्होंने अपने आपको स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में घोषित किया और युरोपीय आदर्शों के खिलाफ उठे।
सांस्कृतिक परिवर्तन: युद्ध ने सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी विश्व को प्रभावित किया, जिसने सैन्य और समाज में बड़े बदलावों को उत्पन्न किया।
प्रथम विश्वयुद्ध के असर ने दुनिया को स्थाई रूप से बदला और दूसरे विश्वयुद्ध की दिशा को तय किया।
विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी -
विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी, इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है जो 1929 से लेकर 1930 के दशक तक दुनिया भर में सुस्ती, बेरोजगारी, और आर्थिक अस्तित्व के प्रकार में बड़े परिवर्तनों की ओर ले गई। इसे "ग्रेट डिप्रेशन" भी कहा जाता है। इस महामंदी की शुरुआत मुख्यतः न्यूयॉर्क स्टॉक मार्केट के मार्ग मंहगाई क्रैश के बाद हुई, जिससे सभी प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में गहरा प्रभाव पड़ा।
आर्थिक महामंदी ने विश्वभर में व्यापारिक गिरावट, उत्पादन में कमी, बेरोजगारी, और उद्यमिता में कमी जैसी बड़ी समस्याएं उत्पन्न की। इसमें विश्वव्यापी व्यापार संबंधों में भी कमी आई और बहुतंत्री में विफलता हुई। बैंकों की गिरावट ने बैंक सिस्टम को कमजोर कर दिया और विभिन्न देशों में बैंक उधारों के संवाद में स्थानांतरण का समर्थन किया।
इसके प्रमुख कारणों में अमेरिका में धातु और इंजीनियरिंग क्षेत्र में उधारों की भारी वृद्धि, अत्यधिक उत्पादन, और बैंकों के धन के आकलन की गलत आंकड़ों की अवस्था शामिल है।
इस महामंदी के दौरान, लोगों की आर्थिक स्थिति में इतनी खाराबी हुई कि वे अपनी रोजी-रोटी के लिए लड़ रहे थे। बेरोजगारी में वृद्धि और उत्पादन में कमी ने सोसाइटी में समाजिक असहमति को बढ़ाया, जिसने राजनीतिक और सामाजिक बिगड़त की ओर मुड़ने को मजबूर किया।
इस महामंदी के बाद, विभिन्न देशों ने आर्थिक नीतियों में सुधार के प्रयासों की शुरुआत की और नई आर्थिक क्रियावली शुरू की ताकि ऐसी स्थितियों को पुनः नहीं होने दिया जा सकें
ब्रेटन वुड्स समझौता क्या था -
"ब्रेटन वुड्स समझौता" एक महत्वपूर्ण आर्थिक समझौता था जो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1944 में ब्रेटन वुड्स, यूके, में हुआ था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य नई आर्थिक क्रम स्थापित करना और यूरोप में स्थितांतरण की स्थिति को सुधारना था।
इस समझौते की मुख्य घटनाएं निम्नलिखित थीं:
मुद्रा स्थानांतरण: ब्रेटन वुड्स समझौता ने यूरोप में मुद्रा स्थानांतरण को सुधारने के लिए कई प्रावधान बनाए। यह एक सामंजस्यपूर्ण मुद्रा क्रम की शुरुआत की, जिससे यूरोपीय देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ सकता था।
आर्थिक नीतियाँ और विशेषज्ञों की सलाह: समझौता ने यूरोपीय देशों के बीच आर्थिक नीतियों को मिलाने और समर्थन करने का प्रणाली स्थापित की, और विशेषज्ञों की सलाह पर आधारित आर्थिक नीतियों को बढ़ावा दिया।
वित्तीय मदद: यह समझौता ने यूरोपीय देशों को अच्छूत वित्तीय स्थिति में मदद करने के लिए बड़े पैम्बर लेने की योजना बनाई।
व्यापारिक और आर्थिक योजनाएं: ब्रेटन वुड्स समझौता ने व्यापारिक और आर्थिक योजनाओं को संबोधित किया, जिससे यूरोपीय देश अपने आर्थिक विकास में सहारा पा सकते थे।
बैंक संरचना की सुधार: यह समझौता ने यूरोपीय देशों में बैंक संरचना की सुधार के लिए योजना बनाई, ताकि वे अच्छी तरह से संगठित हो सकें और आर्थिक गतिविधियों को समर्थन कर सकें।
ब्रेटन वुड्स समझौता ने यूरोप को आर्थिक सुधार के माध्यम से विश्वयुद्ध के बाद से उबारा था, और इसने यूरोपीय संघ की नींव रखी, जो बाद में एक महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक संगठन बना।
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