अस्थाई कर्मचारियों के नियमितीकरण से पूर्व 10 वर्ष की सेवाअवधि को लेकर एकमत नहीं है सरकार
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10 सेवा वर्ष वाले अस्थाई कर्मचारियों का नियमितीकरण से पूर्व होगा परीक्षण
सरकार कर्मचारियों के पक्ष में ले सकती है बड़ा फैसला |
कुछ महीने पूर्व माननीय हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला दिया था कि 2013 की नियमितीकरण नीति पर लगी रोक को हटाया जाता है और राज्य सरकार को आदेशित किया था कि वह 2018 से पूर्व से नियोजित ऐसे राज्य कर्मचारी जो विभिन्न विभागों और सार्वजानिक उपक्रमों में दैनिक वेतन भोगी ,तदर्थ वेतनभोगी ,और संविदा कर्मचारी की हैसियत से दस वर्ष की नियमित और संतोषजनक सेवा पूरी कर चुके हो उन्हें इस आदेश के आधार पर नियमितीकरण के अंतर्गत लाये |
उत्तराखंड सरकार के कई मंत्री चाहते है कि अब इस हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में विभिन्न विभागों और सार्वजानिक उपक्रमों में दैनिक वेतन भोगी ,तदर्थ वेतनभोगी और संविदा कर्मचारी की हैसियत से दस वर्ष की नियमित और संतोषजनक सेवा पूरी कर चुके हो उन्हें नियमितकरण की नीति के तहत पक्का किया जाए इस मुद्दे पर कुछ दिनों पूर्व एक मीटिंग में गहन चर्चा भी की गई है , इस संदर्भ में उत्तराखंड के कार्मिक विभाग ने हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में एक प्रस्ताव बनाकर कैबिनेट के समक्ष रखा है जिसके बाद सरकार के अनेक मंत्री इस बात के पक्ष में दिखें कि उस तिथि तक जितने भी अस्थाई कर्मचारी है को नियमित कर दिया जाए इससे पूर्व भी सरकार ने एक नियमावली तहत 2013 की नियमितीकरण की नीति के तहत दस वर्ष की सेवा पूरी कर चुके है उन्हें नियमित करने का आदेश दिया था |
और इससे भी पूर्व एक नियमावली के तहत 2011 तक 10 वर्ष की सेवा पूर्ण करने वाले कर्मचारियों को नियमित करने की व्यवस्था की गई थी उसके उसके बाद 2013 की दूसरी नियमावली आयी फिर सरकार ने 2016 में नियमितीकरण की सेवा अवधि को घटाकर 05 वर्ष कर दिया जिसे कोर्ट में चुनौती दी गयी अभी फरवरी 2024 में ही कोर्ट ने ये रोक हटाई है अब शनिवार को हुई कैबिनेट बैठक में 2018 तक की सेवावधि को आधार मानते हुए अस्थाई कर्मचारियों को नियमित करने पर चर्चा हुई है लेकिन कैबिनेट के कुछ मंत्री अभी भी इस वर्षाधार पर एकमत नहीं है कुछ सदस्य इसे 2018 के स्थान पर जुलाई 2024 करने के पक्ष में है , हालाँकि अभी इस बाबत कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन उत्तराखंड मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने कार्मिक और न्याय विभाग को इस प्रस्ताव पर न्यायिक और क़ानूनी सलाह लेने का निर्देश दिया है जिसकी रिपोर्ट के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लिया जायेगा |
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