क्या अब जोशीमठ है खतरें में
|
जोशीमठ में घरों में दरार पड़ी |
प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता विडाल दे ला ब्लॉश , फेब्रे , कुमारी सैम्पुल ने संभववाद की संकल्पना को जन्म दिया इसके अनुसार भूपटल पर हर जगह सम्भावना है कोई अनिवार्यता नहीं है मनुष्य इन सम्भावनाओ को चुनने के लिए स्वतंत्र है , लगता है उत्तराखंड सरकार ने भी उत्तराखंड में इसी संकल्पना को अपना लिया है इसीलिए केदारनाथ जैसी घटना के बाद भी अनियंत्रित निर्माण और बड़ी परियोजनाओं पर बेरोकटोक कार्य जारी है जिसका परिणाम अब जोशीमठ में सामने आ रहा है जोशीमठ के 562 घरों, दीवारों , पुलों और सड़कों में दरार पड़ गयी है लोगो का जीवन खतरें में है हजारों लोगों पुनर्वास की तरफ देख रहे है और सरकार से मदद मांग रहे है |
6000 फ़ीट से भी ऊँचे इस जोशीमठ शहर को हिमालय में बद्रीनाथ ,हेमकुंडसाहिब , फूलो की घाटी जैसे तीर्थस्थलों में जाने के लिए प्रवेश द्वार माना जाता है इस शहर को गेट वे ऑफ़ हिमालय भी कहते है , यह शहर भूकम्प के अत्यधिक जोखिम वाले जोन - 5 वाली श्रेणी में आता है ऐसा नहीं है कि यह समस्या आज ही शुरू हुई है बल्कि ये समस्या 1970 के आस पास शुरू हुई थी लोगो के विरोध पर प्रशासन ने गढ़वाल के आयुक्त रहे एम सी मिश्रा जी की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यों की समिति का गठन किया और 1976 मिश्रा समिति ने यह कहा कि जोशीमठ धीरे धीरे डूब रहा है तुरंत बचाव कार्य शुरू किये जाये समिति ने भू धसाव वाले क्षेत्रों को ठीक करा कर वहां बड़ी संख्या में पौधे लगाने की सलाह दी थी इस समिति में सेना, आई टी बी पी , बी के टी सी के प्रतिनिधि भी शामिल थे |
|
सरकारी दफ्तरों के तालें भी है बंद |
क्यों धंस रहा है जोशीमठ-
यूँ तो जोशीमठ का धसना 1970 से भी पहले शुरू हो गया था लेकिन 2020 के बाद से समस्या ज्यादा बढ़ गयी है फरवरी 2021 में बारिश के बाद आयी बाढ़ से सैंकड़ों मकानों में दरार आ गयी है सितम्बर 2022 में राज्य के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की टीम ने सर्वे किया और सीवेरज सिस्टम के खराब होने वर्षा जल और घरेलू अपशिष्ट पानी के जमीन में रिसने से नीचे की मिटटी में बड़े बड़े छेद बनने से दबाव की स्थिति बनने की बात कही इसके अतिरिक्त अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर कटाव को भी जोशीमठ की वर्तमान स्थिति के लिए कारक माना जा रहा है शोध टीम के अनुसार जोशीमठ में ड्रेनेज सिस्टम सही नहीं है यह शहर ही ग्लेशियर के बचे हुए कच्चे टुकड़ों पर बसा हुआ है ड्रेनेज सिस्टम के कारण पानी नीचे जाकर मिटटी को दूसरी जगह धकेल रहा है जिससे चट्टानों में हलचल हो रही है जिसका परिणाम ऊपरी सतह पर भी दिख रहा है |
क्या बड़ी बड़ी परियोजनाएं भी दोषी होगी जोशीमठ को डुबाने के लिए-
जोशीमठ में कई स्थानों पर बी आर ओ के अंतर्गत निर्माण कार्य चल रहे है जैसे हेलंग बाई पास निर्माण कार्य ,एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत् परियोजना, जोशीमठ औली रोपवे जो एशिया का सबसे बड़ा रोप वे है के नीचे एक बड़ी दरार दिखने के बाद फिलहाल इसपर कार्य बंद कर दिया गया है ,एनटीपीसी की हाइडिल परियोजना के टनल पर चार धाम आल वेदर रोड जिसे हेलंग मारवाड़ी बाई पास कहते है और एनटीपीसी की मेगा पनबिजली भी इस विपदा के लिए वजह हो सकती है यद्यपि शासन के आदेश के बाद इनमे से अधिकांश पर रोक लगा दी गयी है वडिआ इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन ज़िओलॉजी के निदेशक के अनुसार ये कारक हाल ही के नहीं है इनका निर्माण लम्बे समय से हो रहा है विभिन्न प्रकार के कारकों मानवीय और प्राकृतिक दोनों ने मिलकर सब्सिडेन्स का निर्माण किया है लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार हाइड्रोपॉवर प्लांट्स के लिए खोदी जा रही सुरंगों के कारण ये सब हो रहा है वे सड़को को चौड़ा करने के लिए शहर के बहुत पास तक विस्फोट कर रहे है बड़े बड़े पहाड़ बारूद से तोड़े जा रहे है जिससे दीवारों में दरार पड रही है | डरे हुए लोग सरकार से कर रहे उम्मीद -
जिला प्रशासन ने हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (HCC )और नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन (एनटीपीसी) को प्रभावित परिवारों को आश्रय देने के लिए तैयार रहने को कहा गया है खतरे में आये परिवारों को चिन्हित किया जा रहा है राहत शिविर में मूलभूत सुविधाओं को बनाये रखने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किये गए है एन डी आर एफ और एस डी आर एफ की टीमों को अलर्ट मोड पर रखा गया है कई विशेषज्ञ विद्वानों और समितियों को जोशीमठ के लिए रवाना कर दिया गया है भूस्खलन न्यूनीकरण केंद्र ,IIT रूडकी से विशेष टीम जोशीमठ के भेजी गयी है | उत्तराखंड में और भी जगह है जोशीमठ की तरह -
केदारनाथ जैसी प्रलय झेल चुके उत्तराखंड राज्य में जोशीमठ के बाद और भी शहर है जो जोशीमठ जैसे ही खतरे में है अभी हाल ही में बदरीनाथ हाई वे पर कर्णप्रयाग में भी भू धसाव की फोटो वायरल हुई थी ,कर्णप्रयाग में बहुगुणानगर और सी एम पी बैंड,सब्जी मंडी के इलाके भू धसाव की चपेट में है, इसी बीच उत्तरकाशी जिले में मस्ताडी गाँव का मामला भी गरमा गया है जहाँ पर 31 वर्षो से भू धसाव की समस्या गंभीर है |
आपको ये भी अच्छे लग सकते है (YOU MAY LIKE THIS ALSO)-
कृपया नीचे बॉक्स में अपनी टिप्पणी (प्रतिक्रिया) अवश्य दें |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
please do not enter any spam link in the comment box.