अटल उत्कृष्ट रा इ का घोडाखुरी के छात्रों ने लाखामंडल में किया शैक्षिक भ्रमण
उत्तराखंड के प्राचीनतम मंदिरों में से एक लाखामण्डल के मंदिर
इस ऐतिहासिक स्थल पर पिछले कुछ वर्षों में बेतहासा नए निर्माण कार्य कराये गए है जिनके नीचे भी पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को कुछ नए अभिलेख और संरचनाएं मिलने की उम्मीद है इसलिए सरकार को इन्हे नोटिस जारी कर उचित मुआवजा देकर इस स्थल पर खुदाई की प्रक्रिया को विस्तार देना चाहिए |
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अटल उत्कृष्ट रा इ का घोडाखुरी |
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की खोजों और अनुसंधानों के अनुसार भगवान शिव को समर्पित नागर शैली में निर्मित इस मंदिर का निर्माण लगभग 12 और 13 सदी ईसवी में हुआ था इस क्षेत्र से बहुतायत में पाए गए स्थापत्य अंगो/वास्तु अंगो तथा मूर्तियों के अवशेषों से मालूम होता है कि पूर्व में यहाँ अनेक शिव मंदिर रहे होंगे जो बाद में किन्ही कारणों से अस्तित्व में नहीं रहे परन्तु वर्तमान में केवल ये ही मंदिर शेष बचा है |
प्रस्तर निर्मित पिरामिडाकार संरचना के नीचे पाए गए ईटों द्वारा निर्मित संरचना के आधार पर लाखामंडल की प्राचीनतम निर्माण तिथि पांचवी से आठवीं शती ईसवी तक आंकी जाती है मंदिर परिसर से ही प्राप्त छठी शताब्दी के एक प्रस्तर अभिलेख में उल्लेख मिलता है कि सिंहपुर के राज परिवार से सम्बंधित राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति चद्रगुप्त जो जालंधर के राजा के पुत्र थे , के निधन पर सद्गति एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु इस भव्य और विशाल शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था |
लाखामण्डल के स्थानीय पुजारी श्री पंडित गौड़ जी के अनुसार इस मंदिर की खोज सबसे पहले एक गाय के द्वारा की गयी उस गाय के पदचिन्ह आज भी मंदिर पर विद्यमान बताये जाते है स्थानीय पुजारी जी के अनुसार यहाँ आस पास यत्र तत्र जहाँ भी खुदाई की जाती है वहां पर ही धरातल के नीचे मिटटी में दबे हुए छोटे बड़े आकार के प्राचीन शिवलिंग प्रकट होते है , एक अन्य स्थानीय व्यापारी के अनुसार कुछ शिवलिंग तो हाल ही में 2022 में खुदाई में प्राप्त हुए है जबकि कुछ संभावित स्थानों पर जहाँ यदि खुदाई की जाएँ तो अनेक अभिलेख प्राप्त हो सकते है लेकिन उन स्थानों पर स्थानीय लोगों ने अपने निवास बना लिए है |
प्रधानाचार्य जी श्री प्रशांत बिष्ट के नेतृत्व में अटल उत्कृष्ट रा इ का घोडाखुरी के 100 से अधिक छात्रों को स्थानीय पुजारी जी के अतिरिक्त अंग्रेजी विषय के प्रवक्ता श्री लोकेन्द्र सिंह रावत जी ने भी अपने उत्कृष्ट और प्रभावशाली व्याख्यान से ओतप्रोत करते हुए उन्हें भारत की प्राचीन सभ्यता की महत्वता की और अभिमुख किया |
स्थानीय लोगों के अनुसार लाखामण्डल का सम्बन्ध महाभारत काल में पांडव और कौरव के मध्य युद्ध से भी है जब कौरव ने लाक्षागृह में पांडव को जलाकर मारने का प्रयास किया तो विधुर जी ने सुरंग बनाकर पांडव की रक्षा की थी |
एक अनुमान के अनुसार यहाँ एक लाख पच्चीस हजार शिवलिंग की स्थापना की गयी थी जो अब भी खुदाई में यहाँ प्राप्त होते रहते है इनको देखकर इनकी प्राचीनता का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है |
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