रागी से नूडल्स बनाये, स्वास्थ्य के साथ पैसे भी कमाए
रागी,भारत की प्राचीन फसलों में से एक महत्वपूर्ण फसल है जिसके बारे में हममे से अनेक लोग अपरिचित ही है इसका सबसे बड़ा कारण है कि आजकल की भागा दौड़ी वाली जीवनशैली में हमे सबकुछ त्वरित गति से और एकदम तैयार चाहिए, इसी आपाधापी में पैसे कमाने के लालच में हमने अपनी सेहत को भी दॉँव पर लगा दिया है , मैदे से बनी खाद्य सामग्री खाते खाते हमने अपने पेट की आंतों और अपने पाचनतंत्र के साथ जो ज्यादती की है उसी का परिणाम है कि आज विश्व के लगभग 25 प्रतिशत लोग पेट या पेट से सम्बन्धित रोगों या समस्याओं से त्रस्त है , आयुर्वेद के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का पेट या पाचनतंत्र सही है तो अपनी सेहत की आधी लड़ाई तो आपने वैसे ही जीत ली होती है , मैदा हमारे पाचन को धीमा करता है हमारी आंतो के आसपास एक कठोर पदार्थ की परत तैयार करता जाता है जो बाद में आंतो के सड़ने का कारण बन सकता है है या फिर आंत्रशोध की समस्या बनता है मैदे से बने बिस्किट्स ,मैदे से बने फास्टफूड्स ,मैदे से बने चपातियाँ ,मैदे से बने नूडल्स अक्सर हमारे लिए समस्या बनते है लेकिन बनाने में आसान , खाने में मुलायम होने के कारण ये खाद्यपदार्थ हमारी जीवनशैली का अभिन्न अंग बन गए है बच्चों से लेकर बूढों तक में इनके लिए पागलपन देखा जाता है , हम लोग अपने मूल भारतीय भोजन की प्रकृति को छोड़कर पश्चिमी भोजन की शैली को अपनाते जा रहे है और बस यही से समस्या शुरू हो जाती है |
रागी ही क्यों
रागी से बनी नूडल्स न केवल खाने में स्वाद लगती है बल्कि इनको मैदे से बने खाद्य पदार्थो की तुलना में अधिक लम्बे समय तक फ्रीज भी किया जा सकता है , रागी से नूडल्स के लिए किसी भी प्रकार के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है यदि आप चाहे तो अपने घर पर भी रागी से बने नूडल्स ओर बिस्किट्सी बनाकर बाजार में बेचकर अच्छा खासा लाभ कमा सकते है इसमें कच्चे माल के लिए आपको केवल खेतों में तैयार अच्छी गुणवत्ता वाली रागी किसान से खरीदनी पड़ेगी और आप अपना कार्य शुरू कर सकते है रागी को अंग्रेजी मे फिंगर मिलेट ओर हिन्दी मे मण्डुआ भी कहा जाता है प्राचीन भारत के लोग मण्डुआ या चावल की रोटी ही खाते थे आज भी भारत के ग्रामीण भागो में विशेष रूप से भारत के उत्तरी हिस्सों में ये कहावत विख्यात है कि मोटा खाये अन्न तो तन रहे प्रसन्न , शायद ये ही कारण रहा होगा कि उस समय में लोग इतना अधिक शारीरिक श्रम कर पाते थे क्योकि रागी जैसे अनाज में मिलने वाले तत्व उनको आंतरिक शक्ति प्रदान करते थे | रागी में फाइबर प्रोटीन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में मिलते है इसलिए इसे सर्वश्रेष्ठ आहार की श्रेणी में भी रखा गया है एक सर्वे के अनुसार रागी के नियमित सेवन से शरीर में खून की कमी वजन में कमी और बुढ़ापे के लक्षणों को भी दूर किया जा सकता है रागी को आप आटे के रूप में गूँथ कर भी खा सकते है और इसको शक़्कर या खांड के साथ मावे के मिलाकर गोल लड्डू के रूप में बनाकर रख ले और शाम को सोने से पहले एक एक करके कहते रहे कुछ दिनों के बाद आप अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस करंगे |
रागी नहीं सेहत से दूर भागते लोग
शरीर स्वस्थ रखना आसान कार्य नहीं है क्योकि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक मेहनत पौष्टिक आहार और पर्याप्त नींद आराम आवश्यक है आजकल के समय में हम सब इंस्टेंट स्टाइल में जीवन जीने के आदि हो गए है हम सबको सबकुछ तुरंत चाहिए इस तुरंत के चककर में हमने अपने पूर्वजों की सिखाये सेहत के तरीके बिलकुल पीछे छोड़ दिए है ये सबसे बड़ी वजह है की आज आप डॉक्टर के क्र या चिकित्सालयों के बाहर मरीजों की लम्बी लाइन देख पाएंगे जिनमे से 20 प्रतिशत तो केवल पेट की बीमारियों से ग्रसित होते है जिनका केवल एक ही इलाज़ ह कि वो अपने खान पान को बदले अपने पेट पाचन को ठीक करें इस समस्या को निपटाने में रागी और रागी से बना भोजन अमृत के सामान कार्य का सकता है लेकिन ये सबकुछ इंस्टेंट नहीं हो सकता है क्योकि रागी को सुखाकर उसे पाउडर बनाना उससे बने भोजन का उतना स्वादिष्ट न होना रागी से आटा गूंथना भी आसान नहीं होता है उसका रंग भी उतना लुभावना नहीं होता है उसको चबाने में भी समय लगता है इन सभी बातो के कारण लोगो ने मैदा से बने भोजन को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है जिसका भुगतान हमने बीमार होकर चुकाया है ,आइये फिर से एकबार सेहत की तरफ मुड़ते है, मुड़ते है अपने पूर्वजो की उस सीख की तरफ की भोजन पहले शरीर के लिए हो बाद में स्वाद के लिए, मुड़ते है फिर से मोटे अनाज की और रागी की और क्योकि आपकी मांग ही आपूर्ति को निर्धारित करेगी आपकी मांग के आधार पर किसान रागी को पैदा करेगा आपकी मांग के आधार पर ही नए शोध कार्य कृषि पर होंगे ,
सेहत आपकी है इसलिए चुनाव भी आप ही करें|
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